Sunday, May 30, 2010

मेरी तलाश की ज़ंजीर में

मेरी तलाश की ज़ंजीर में
एक और कड़ी हो तुम
क्या मालूम तुम आखिरी हो ?
तेरे जुल्फों की घनघोर घटाओं
के पीछे छिपा है एक चाँद
चंचल शोख से चेहर के पीछे
छुपी एक शांत भोली भाली हिरणी हो तुम
चश्मे के पीछे छिपे दो नैनो में झाँकने
की कोशिश में
बार बार याद किया है मैंने
तुम्हारा बाय मधुरेश...
और तुम भी आना कहना

ब्रहमपुत्र के किनारे
कामख्या की गोद में
रात की गहराइयों में बार बार
खनकती तुम्हारी हँसी ने
जैसे चुपके से आकर जगाया हो मुझे
kandisa के गाने पर झूमती तुम्हारी जुल्फों
ने जीता था मेरा मन
पर मदमस्त चंचल अदाओं में कहीं
छुपी थी एक उदासी की रेखा
और किसी का डर
जानकर मैंने गया था हिले ले झकझोर दुनिया
और टूट गए थे सारे सपने

- मधुरेश, २८ दिसम्बर, २००० गुवाहाटी, ईद उल फ़ित्र के दिन

मैं और मेरी लाश

जल रही है मेरी लाश चारों तरफ
मचा है कुहराम हर जगह
फिर भी हो तुम शांत खड़े
आओ देखो अपने बेटों की करतूत
क्या कर रहे हैं तुम्हारी सृष्टि को ?
क्या कर रहे है तुम्हारी रचना को ?
हाँ जल रही है मेरी लाश ।

टूटता है मस्जिद, टूटता है मंदिर
चुर्च भी जलने लगे हैं अब
और साथ में बच्चे भी
हाँ जल रही है मेरी लाश ।

लड़ रहे हैं तुम्हारे बेटे
मज़हब के नाम पैर, देश के नाम पर
पर उन्हें पता नहीं
सारी सृष्टि तुम्हारी है
वे लड़ रहे है उस सृष्टि के लिए जिस पर उनका कभी अधिकार था ही नहीं
हाँ जल रही है मेरी लाश ।

कोई तो आये समझा जाये उन्हें
तुम क्यों नहीं आते ?
क्या तुम्हे इंतज़ार है ?
और लाशें जलने का
या तुम भी तुले हो अपने बेटों की तरह अपना घर जलाने पर
हाँ जल रही है मेरी लाश ।
- मधुरेश, फेब्रुअरी १९९९
(ग्राहम स्टेंस के लिए जिनको उनके दो बच्चों के साथ रात को सोते वक़्त जला दिया गया था २० जनुअरी १९९९ को धार्मिक कट्टर पंथियों की एक भीड़ द्वारा ।)