Wednesday, June 9, 2010

संघर्ष ही जीवन है


सपनो की ऊँगली पकडे
एक नदी की धार के पीछे
संघर्ष ही जीवन है का नारा लगाते
आखिर एक समुन्दर में मिल गए तुम
एक लम्बी यात्रा को
मेरी शुभकामनायें मेरे दोस्त !
- आशीष मंडलोई हमारा नर्मदा बचाओ आन्दोलन का साथी जो २० मई को शांत हो गया (जैसे की निमाड़ में लोग बोलते हैं) .

Wednesday, June 2, 2010

ख़ुदा के नेक बंदे

पत्थर की मूर्तियों में है बसता ख़ुदा
मानकर तोड़ डाला
तुमने
बेज़ान मुस्कुराते बुद्ध को
अपने पागलपन को छुपाने की
ख़ातिर
एक शातिप्रिय पागल को मिटाया है
तुमने
एक सूर्य को बुझाने की कोशिश में
अपना घर ख़ुद जलाया है
तुमने
ख़ुदा के नाम पर ही
ख़ुदा के बन्दों को सताया है
तुमने
कब तक यूँ ही तुम्हारा पागलपन
रहेगा जारी
कब तक यूँ ही दुनिया
रहेगी खामोश
ऐ ख़ुदा के नेक बंदे
कभी तो तुम्हे अक्ल आएगी
और पत्थरों को छोड़
अपने पागलपन के अनेक
चेहरों को तोड़ोगे तुम  .
- मधुरेश, मार्च २५ २००१. तालिबान के द्वारा बामियान में बुद्ध की प्रतिमा तोड़ने के बाद.

मैं देशद्रोही हूँ (?)

जलियांवाला बाग़ हत्याकांड के विरोध में डंडे खाए हैं मैंने
चौरी चौरा में जेल गया हूँ
भारत छोड़ो आन्दोलन में घर छोड़ निकल पड़ा
देश की आज़ादी की खातिर
लोगों ने कहा क्रांतिकारी
अंग्रेज़ी हुकूमत ने कहा देशद्रोही, राजद्रोही
तो क्या मैं देशद्रोही हूँ ?

सोचा था आज़ाद भारत में मैं देशभक्त हूँ
पर गलत था मैं
पुरानी दिल्ली की गलियों में
अपनी जान बचाने को कुत्तों की तरह भागा हूँ मैं
क्योंकि मैं नहीं मानता
हिंदुस्तान सिर्फ हिन्दुओं का है
तो क्या मैं देशद्रोही हूँ ?

गर्व से कहो हम हिन्दू हैं का नारा
और बाबरी मस्जिद तोड़ डाला
एक बार फिर से भाग रहा था
मैं बम्बई की सड़को पर
अपनी जान बचाने की खातिर
आखिर क्यूं, आखिर क्यूं ?
- मधुरेश, जनुअरी 2001

रिश्ते

रिश्तों को एक नाम देने
की कोशिश में
हर पल उलझता रहा हूँ मैं
क्या रिश्ते बेनाम नहीं होते ?
हर रिश्ते का नाम जरूरी है
माँ, बाप, भाई, बहन के रिश्तों
से भाग तो नहीं सकता कोई
पर रिश्ते बदलते तो हैं
ज़िन्दगी बीत गयी
रिश्तों की उलझन सुलझाने में
क्या रिश्ता है ?
ज़िन्दगी का मौत से
फूलों का भौरों से
प्यासे का पानी से
और मधुमखी का शहद से
सिर्फ ये की सब कुछ सच है
कुछ भी झूठ नहीं
रिश्तों के बंधन से भाग सका है कोई
सिर्फ समझौते किये हैं
और रिश्तों के नाम बदलते रहे हैं
बदलते रहे हैं .
- मधुरेश, दिसम्बर २०००

ज़िन्दगी की लम्बी दौड़ में

ज़िन्दगी की लम्बी दौड़ में
दो बूँद ख़ुशी के लिए तरसता रहा
राशन की लाइन में खड़ा रह गया
दो किलो गेहूं के लिए
हर कोई चला गया पर
मेरी बारी नहीं आई

तिनके तिनके की ख़वाहिश लिए
दर दर ठोकरे खाता रहा
रात और दिन बीतते रहे
किसी ने याद तक नहीं किया

एक मैं
जिसने हर किसी को याद किया
बार्रिश में भीगते
खुले आँखों सपना देखते
शायद कोई आ जाये
घडी की टिक टिक के पीछे
भागता रहा मैं

समय को पकड़ने की कोशिश में
सोचा साथ चलने का मौका तो मिलेगा
पर वक़्त हाथों से फिसलता रहा
और मेरी रूह बेचैन
किसी के तलाश में भटकती रही

- मधुरेश, दिसम्बर 2000

मैं एक कुत्ता हूँ

मैं एक कुत्ता हूँ
ईमानदारी की रोटी खाने का दंभ भरता हूँ
बड़ी बड़ी बातें करता हूँ
पर एक बिल्ली की म्याऊँ से
डर जाता हूँ

सुबह सुबह ब्लू लाइन बस में
दो लोग की ज़ेब काटकर मंदिर में प्रसाद चढ़ाता हूँ
मैं एक कुत्ता हूँ

दोपहर की चिलचिलाती धूप में
स्वभिमान से भरा खली पेट लिए
ढाबों का बोर्ड पढता हुआ
गुरूद्वारे के लंगर से
अपनी भूख मिटाता हूँ
मैं एक कुत्ता हूँ
- मधुरेश, नवम्बर, 2000

बेखबर

तेरे मासूम से चेहरे पर
बंद पलकों के पीछे छिपे दो नयन
कुछ हलकी शाम की गहराई लिए
मानो कर रही थी किसी का इंतज़ार

सामने बैठी सभी की निगाहे
तलाश रही थी तुम्हारे चेहरे को
और आस पास से बिलकुल बेखबर
न जाने कहाँ खोई थी तुम

तुम्हारे बगल में बैठा
बेताब था मै, तुम्हे जानने को, पाने को
क्योंकि मुझे भी तलाश है किसी की
लगा मंजिल के पास बैठा हूँ
पर ज्यों ही कदम बढ़ाये थे लपकने को
तुम उठकर चल पड़ी थी
शायद अपने इंतज़ार से उब कर
- मधुरेश, अगस्त 2000

एक शाम की मौत का इंतज़ार

एक शाम की मौत का इंतज़ार
किया था उस पीपल के नीचे
जब तुम दूर उसकी बाँहों में
झूल रही थी
तिनका तिनका जोड़, तुम्हारी यादों का
एक सपनो का घर ही तो बनाया था
इस शाम की मौत और उसका संताप मानाने
हर कोई आया था
आई नहीं तो सिर्फ तुम, सिर्फ तुम .
- मधुरेश, 2000

तलाश

तलाश
मुझे अहसास है
तुम्हारी गर्म सांसो से भरे चेहरे को
अपने हाथों में ले
धीरे से उठाया था मैंने
तुम्हारी लाल-लाल आँखों में
देखी थी अपने आँखों की परछाई
कुछ पल यूँ ही डूबा रहा था
तुम्हारे आँखों की लाली में
अचानक ही ख्याल आया
वह कोने में खड़ा वेटर
काफी देर से हमें ही तो 
देख रहा था
हडबडाकर, तुम्हारे मोती से
आसूँ की दो बूँद सहेजे
मैं चल पड़ा था
किसी और की तलाश में
- मधुरेश, पुणे, १३ जून २०००

किसकी नदियाँ किसके जंगल

किसकी नदियाँ किसके जंगल
बोलो किसके हैं ये पहाड़
क्या खाक मिली है आज़ादी
जब सब कुछ ही लेले सरकार

प्रजातंत्र के नाम पे
प्रजा का काटते हैं गला
अपनी ज़मीन छोड़ के भागो भैया 
देश का होगा भला

छोड़ के आओ जंगल मिलेगा
slum का उपहार
इसी को कहते हैं प्रगति
सुन के दिल खुश हुआ, यार

खेती बाड़ी को डुबो के
तुम सभ्यता को उबारोगे
जीवनदान के नाम पे आखिर
कितनो को तुम मारोगे ?

इतिहास चीख गवाही देगा
बाँध करेगा सत्यानाश .

- Ralley for the Valley, August 1999 के दौरान आनदं, अमित, गगन, मितुल और मधुरेश के द्वारा 

तुम्हारे लिए

तुम्हारे लिए
एक ख़त
और एक ख़त में छुपी ढेर सारी बातें
बातें पूरी दुनिया की
आज की, कल की और परसों की
तुम्हारे लिए
ख़त में छिपे प्रत्येक अक्षर
और उन अक्षरों का रूप, साज़ और श्रृंगार
अक्षरों से आती मेरे दिल की पुकार
उनमे छिपा मेरे भावों का संसार
सब तुम्हारे लिए
और क्या ?
दादा-दादी की कहानियां, इंडिया गेट की सैर
पंडित जी की बांसुरी और सितार
अमृतसर का स्वर्ण मंदिर, साथ में फिल्मे
सब कुछ तो तुम्हारे लिए
पर मेरे लिए
सिर्फ यादें, यादें और ढेर सारी यादें
- मधुरेश, मई 1999

इंतज़ार

इंतज़ार है मुझे इस पल का
जब हम साथ होंगे
मुझे इंतज़ार है रजनीगंधा के फूलों का
रात की उस घडी का
जब तुम्हारी सुन्दरता और निखरती है
लोग कहते हैं तुम रात की रानी हो
नहीं तुम तो खुद रात हो, रजनी हो
क्या वह रात फिर आएगी
एक सवेरे के साथ शायद
और एक बार फिर
हम साथ साथ होंगे .
- मधुरेश, फेब्रुअरी 1999

मेरा घर जल गया

मेरा घर जल गया
मैं रोया चिल्लाया, लोगों को बताया
लोगों ने सुना, सहानुभूति दिखाई
घर गए और सो गए
चलो अपना घर तो नहीं जला
अब मुझे इंतज़ार है
कब दुसरे का घर जले
और मैं भी खुशियाँ मनाऊँ
- मधुरेश, फेब्रुअरी 1999

एक तलाश की परिभाषा हो

एक तलाश की परिभाषा हो
तुम मेरे लिए
मगर तुम्हे परिभाषित करने की कोशिश में
बार बार नयी परिभाषा बनायीं है मैंने
बिलकुल बच्चों सी हरकतों के बीच
अचानक एक अबूझ पहेली बन जाती हो तुम
तुमसे मिलने के प्रतीक्षा में
एक एक पल वर्ष प्रतीत होते हैं
पर मिलते ही तन्मय हो तुम्हारी
बेमतलब के बातों में खो जाता हूँ
तुम्हारे हर पागलपन में
मैं अर्थ ढूँढने की कोशिश करता हूँ
और खुद पागलों की तरह
बातें करने लगता हूँ
लोगों को बहुत शिकायत है तुमसे
पर तुम जैसे हो, अच्छी हो मेरे लिए
मैंने तुम्हारे लिए अपनी परिभाषा बदल ली है
एक नयी दुनिया बना ली है
अपने सपनो की दुनिया
हकीकत से बिलकुल परे
दुनिया की सच्चाई और रिश्तों के बंधन से दूर
बहुत ही दूर, बहुत ही दूर ...

- मधुरेश, january १ २००१  

Sunday, May 30, 2010

मेरी तलाश की ज़ंजीर में

मेरी तलाश की ज़ंजीर में
एक और कड़ी हो तुम
क्या मालूम तुम आखिरी हो ?
तेरे जुल्फों की घनघोर घटाओं
के पीछे छिपा है एक चाँद
चंचल शोख से चेहर के पीछे
छुपी एक शांत भोली भाली हिरणी हो तुम
चश्मे के पीछे छिपे दो नैनो में झाँकने
की कोशिश में
बार बार याद किया है मैंने
तुम्हारा बाय मधुरेश...
और तुम भी आना कहना

ब्रहमपुत्र के किनारे
कामख्या की गोद में
रात की गहराइयों में बार बार
खनकती तुम्हारी हँसी ने
जैसे चुपके से आकर जगाया हो मुझे
kandisa के गाने पर झूमती तुम्हारी जुल्फों
ने जीता था मेरा मन
पर मदमस्त चंचल अदाओं में कहीं
छुपी थी एक उदासी की रेखा
और किसी का डर
जानकर मैंने गया था हिले ले झकझोर दुनिया
और टूट गए थे सारे सपने

- मधुरेश, २८ दिसम्बर, २००० गुवाहाटी, ईद उल फ़ित्र के दिन

मैं और मेरी लाश

जल रही है मेरी लाश चारों तरफ
मचा है कुहराम हर जगह
फिर भी हो तुम शांत खड़े
आओ देखो अपने बेटों की करतूत
क्या कर रहे हैं तुम्हारी सृष्टि को ?
क्या कर रहे है तुम्हारी रचना को ?
हाँ जल रही है मेरी लाश ।

टूटता है मस्जिद, टूटता है मंदिर
चुर्च भी जलने लगे हैं अब
और साथ में बच्चे भी
हाँ जल रही है मेरी लाश ।

लड़ रहे हैं तुम्हारे बेटे
मज़हब के नाम पैर, देश के नाम पर
पर उन्हें पता नहीं
सारी सृष्टि तुम्हारी है
वे लड़ रहे है उस सृष्टि के लिए जिस पर उनका कभी अधिकार था ही नहीं
हाँ जल रही है मेरी लाश ।

कोई तो आये समझा जाये उन्हें
तुम क्यों नहीं आते ?
क्या तुम्हे इंतज़ार है ?
और लाशें जलने का
या तुम भी तुले हो अपने बेटों की तरह अपना घर जलाने पर
हाँ जल रही है मेरी लाश ।
- मधुरेश, फेब्रुअरी १९९९
(ग्राहम स्टेंस के लिए जिनको उनके दो बच्चों के साथ रात को सोते वक़्त जला दिया गया था २० जनुअरी १९९९ को धार्मिक कट्टर पंथियों की एक भीड़ द्वारा ।)