ईमानदारी की रोटी खाने का दंभ भरता हूँ
बड़ी बड़ी बातें करता हूँ
पर एक बिल्ली की म्याऊँ से
डर जाता हूँ
सुबह सुबह ब्लू लाइन बस में
दो लोग की ज़ेब काटकर मंदिर में प्रसाद चढ़ाता हूँ
मैं एक कुत्ता हूँ
दोपहर की चिलचिलाती धूप में
स्वभिमान से भरा खली पेट लिए
ढाबों का बोर्ड पढता हुआ
गुरूद्वारे के लंगर से
अपनी भूख मिटाता हूँ
मैं एक कुत्ता हूँ
- मधुरेश, नवम्बर, 2000
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