Wednesday, June 2, 2010

रिश्ते

रिश्तों को एक नाम देने
की कोशिश में
हर पल उलझता रहा हूँ मैं
क्या रिश्ते बेनाम नहीं होते ?
हर रिश्ते का नाम जरूरी है
माँ, बाप, भाई, बहन के रिश्तों
से भाग तो नहीं सकता कोई
पर रिश्ते बदलते तो हैं
ज़िन्दगी बीत गयी
रिश्तों की उलझन सुलझाने में
क्या रिश्ता है ?
ज़िन्दगी का मौत से
फूलों का भौरों से
प्यासे का पानी से
और मधुमखी का शहद से
सिर्फ ये की सब कुछ सच है
कुछ भी झूठ नहीं
रिश्तों के बंधन से भाग सका है कोई
सिर्फ समझौते किये हैं
और रिश्तों के नाम बदलते रहे हैं
बदलते रहे हैं .
- मधुरेश, दिसम्बर २०००

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