Wednesday, June 2, 2010

ज़िन्दगी की लम्बी दौड़ में

ज़िन्दगी की लम्बी दौड़ में
दो बूँद ख़ुशी के लिए तरसता रहा
राशन की लाइन में खड़ा रह गया
दो किलो गेहूं के लिए
हर कोई चला गया पर
मेरी बारी नहीं आई

तिनके तिनके की ख़वाहिश लिए
दर दर ठोकरे खाता रहा
रात और दिन बीतते रहे
किसी ने याद तक नहीं किया

एक मैं
जिसने हर किसी को याद किया
बार्रिश में भीगते
खुले आँखों सपना देखते
शायद कोई आ जाये
घडी की टिक टिक के पीछे
भागता रहा मैं

समय को पकड़ने की कोशिश में
सोचा साथ चलने का मौका तो मिलेगा
पर वक़्त हाथों से फिसलता रहा
और मेरी रूह बेचैन
किसी के तलाश में भटकती रही

- मधुरेश, दिसम्बर 2000

No comments:

Post a Comment