दो बूँद ख़ुशी के लिए तरसता रहा
राशन की लाइन में खड़ा रह गया
दो किलो गेहूं के लिए
हर कोई चला गया पर
मेरी बारी नहीं आई
तिनके तिनके की ख़वाहिश लिए
दर दर ठोकरे खाता रहा
रात और दिन बीतते रहे
किसी ने याद तक नहीं किया
एक मैं
जिसने हर किसी को याद किया
बार्रिश में भीगते
खुले आँखों सपना देखते
शायद कोई आ जाये
घडी की टिक टिक के पीछे
भागता रहा मैं
समय को पकड़ने की कोशिश में
सोचा साथ चलने का मौका तो मिलेगा
पर वक़्त हाथों से फिसलता रहा
और मेरी रूह बेचैन
किसी के तलाश में भटकती रही
- मधुरेश, दिसम्बर 2000
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